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Male Monologues

Best Male Monologues-thestageyactor.com

First of all, You can find here the Best Male Monologues. These are the monologues that are performed by great actors. So you can prepare these monologues for auditions or self-practice. These are monologues of theatre plays, movies, etc. written by the great writers of the world.
As a result, from here you can select any monologue based on gender, age, and character requirements. And practice. You can perform it in auditions or workshops or anywhere on stage. In short, the monologues will be effective in your acting practice and auditions.

A Good Monologue: Monologues For Male or Best Male Monologues

A well-written monologue makes them remember you. Good audition monologues will do:

Stay below two minutes: Two minutes is enough time to show your baggage. In fact, auditors and casting directors make their decision after 30 seconds, perhaps even less.

You have a clear objective: You can’t stand there and talk. You have to actively talk to someone you have imagined, and you will be trying to get something from them.

There is a different beginning, middle, and end:
A start: a strong first sentence to grab attention.
A middle: lots of juicy ingredients.
An end: a strong finish.
When there is a structure in your monologue, the auditor or casting director is more likely to remember you.

Conflict occurs: Drama cannot exist without conflict. Who wants to see everyone play?
It can be boring. And also interesting.

Kids Monologues | Female Monologues

Best Monologues For Male

मुहम्मद: हमारी अज़ीज़ रियाया। हाकिमे-अदालत, काजी-ए-मुल्क का फैसला आपने सुना। हमारे चंद कारिंदों की वजह से एक बिरहमन के साथ जो जुल्म हुआ, आपने देखा। हमने उस जुर्म का इक़बाल करके इंसाफ-पसंदगी और हक़ का रास्ता इख़्तियार किया है। मजहबी तफरीक की वजह से, टुकडो में बिखरी हुई हमारी सल्तनत की तवारीख में, आज का यह लम्हा हमेशा जिंदा रहेगा। इस पाक लम्हे को गवाह रखकर हम चंद अल्फाज़ तावारीख के पन्नो पर दर्ज कराना चाहते है। हमेशा से हमारी ख्वाहिश रही है कि हमारी सल्तनत में सबके साथ एक जैसा सुलूक हो। खुशियाँ हों, शादमानी हों और हर शख्स को हक़ और इन्साफ हासिल हो। अपनी रियाया के अमनो-अमान ही नही, बल्कि जिंदगी के हम ख्वाहिशमंद है.....जिंदा-दिली और खुशहाली से भरपूर जिंदगी। हम अपनी अज़ीम सल्तनत की भलाई के लिए एक नया कदम उठाना चाहते है। हमारी तजवीज़ है कि इसी बरस हम अपना दारुल-खिलाफा दिल्ली से दौलताबाद लें जाएँ। हाँ, आप लोगो को हमारी तजवीज़ सुनकर जरुर हैरत हुई होगी। लेकिन हम सबको बता देना चाहते है कि ये किसी मगरूर सुलतान का बेमानी खब्त नही है इसकी ठोस वजह है। दिल्ली हमारी सल्तनत की उतरी सरहद के करीब आबाद है, जहाँ हर लम्हे मुगलों के हमलो का खतरा दरपेश रहता है। और आप जानते ही है कि हमारी सल्तनत दूर दक्खिन तक फैली हुई है। एक दौलताबाद ही हमारी सल्तनत के बाहर सूबों के मरकज में आबाद है। जहाँ से हम अपनी लम्बी छोड़ी सल्तनत के हर कोने पर हुकूमत की मज़बूत गिरफ्त कायम, रख सकते है। इससे भी अहम बात ये है कि दौलताबाद हिन्दुओं की आबादी है। हम अपने दारुल-खिलाफे को वहां ले जा कर हिन्हुओं और मुसलमानों में एक मज़बूत रिश्ता कायम करना चाहते है। इस नेक काम की खातिर हम आप सबको दौलताबाद आने की दावत देते है। दावत दे रहे है, हुक्म नही। जिन्हें हमारे ख्वाबों की सदाकत पर ज़रा भी यकीन हो, वही आयें। महज़ उनकी मद्दत से हम एक ऐसी मिसाली हुकूमत कायम करेंगे जिसे देखकर सारी दुनिया दंग रह जाएँ। हमारे ख्वाबों की ताबीर बनने वालो खुदा हाफ़िज़।
राकेश: आज मैंने सारे दिन दफ्तर में किसी से बात नहीं की ... सुबह से शाम तक दिमाग में कुछ तस्वीरें सी गडमड होकर घूमती रहीं । कभी पुष्पा पिंगले का चेहरा नजर आता, कभी मेरी माँ का और कभी एम . एल . ए . साहब की बेटी सोनिया .... जब मेरा सर ज्यादा चकराने लगा, दिमाग फटने लगा तो मैंने अपनी आँखें बंद कर ली । आँखें बंद की तो दिमाग में एक शोर या उठने लगा । जैसे कोई बाढ़ सी आ गई हो। बाढ़, जिसमें मेरे बापू की नाव डूब गई थी। बाढ़, जिसने मेरी माँ की कलाईयों से लाल हरी चूड़ियां उतार कर काले धागे बंधवा दिए थे। मैंने घबरा कर अपनी आँखें खोल दी। चार बजे में दफ्तर से निकल गया और सोधे घर आकर लेट गया । रात बारह एक बजे तक में सीलन से भरी हुई छत को देखता रहा । मेरा रूम पार्टनर मोरे(दोस्त का नाम..मोरे) एक बजे घर आया और मुझ से कहने लगा ... " ये लाईट बंद कर दें ... लाईट में क्या हेमा मालिनी मिलने आयेगी तुझसे । मैंने कहा.. नहीं मोरे वो बात नहीं आजकल पता नहीं क्यों मुझे अंधेरे से डर लगने लगा है । वो बोला " डर लगता है तो अपनी अम्मा को यहां बुलाले " कहकर लाइट बंद कर दी । मुझे बहुत तेज़ गुस्सा आया मेरा मन हुआ कि उसके दौत तोड दू । मगर मोरे से कभी कुछ कह नहीं पाता हूँ कमरे में अंधेरा होते ही मुझे और डर लगने लगा मुझे ऐसा लगने लगा जैसे बिस्तर पर मेरे साथ कोइ लेटा है । कभी लगता जैसे मेरी माँ है , कभी लगता जैसे मेरा कुता गोका है और कभी मुझे ऐसा लगता जैसे सफेद कफन में लिपटी हुई मेरी छोटी बहन शकुन्तला की लाश है ....। मुझे कुछ आवाजें भी सुनाई देने लगी जैसे .. जैसे बैन करती मेरी अम्मा ... अरे कहाँ गई मोर लल्ली रे ... अम्मा को छोड़ कर तू कहाँ गई रे ... मोर लल्ली मोर बिटिया रे .... अचानक लगा कि मेरी आँखों के किनारे से पानी टपक रहा है । ये क्या .... मुझे पता ही नहीं चला कि में रो रहा था।
Chandu: Dekho brother ... apna funda simple hai .... ek hi life hai..maje mein jeene ka .... time paas karne ka , enjoy karne ka ! Arre kaam-kaam-kaam....kisko dikhane ka hai kaam kar ke ? saabit kya karne ka hai ? aisa kya ukhaad loge ? Saala arbon ki aabadi mein ek aad do jan ne nahi bhi kiya kuch kaam to chalega ... koi sunami nahi aa jayega iski wajah se ! par abhi baa ko aur pappa ko kaun samjhaye ... to theek hai..jaane ka shop pe..baithne ka ... mobile pe pub g khelna ka , film vilm dekhne ka ... sham ko waaaps ghar ! Waise bhi ghar mein film vilm dekhno ko allowed hai nahi na bhai ... kya bolti public ?
Nandu: Main nahi jaanta mere shareer ke saath kya ho raha hai, jaane kahaan se safed daane idhar udhar nikal jaate hain, phir unhe dabao toh kuch chip chipi safed si taral cheez bahar nikalti hai. Main pehle ghar ka saara kaam kar leta tha araam se, maalkin toh mujhse badi khush rehti hai, par ab kaam karne ka bilkul mann nahi karta, sab hi pe itna gussa aata hai, bas akele ek kone mein baithne ka mann karta hai, par inka kaam na karun toh waapis gaon bhej denge, mujhe waapis gaon nahi jaana! Par .. chhoti malkin achhi hain, unke liye kaam karna achha hi lagta hai, chhoti malkin apne blouse khud seelti hain, unhone mujhe apne naye blouse ke liye kapda lene ke liye bheja, unhone raamlal se pehle hi baat kar li thi. Blouse ka kapda itna mulayam tha, maine usse mulayam kisi cheez ko kabhi haath hi nahi lagaya hai. Main chhupke se chhoti malkin ko blouse seelte huye dekhta tha, kisi bahaane se unke kamre mein chale jaata tha, blouse ke chhote bekaar kate hisso ko churaake raat ko unpe haath ferta tha. Chhoti malkin ne aaj blouse poora kar liya, main chhupke dekh raha tha, unhone apni salwar utaari, unke toh yahaan (points to armpit) bhi baal the, uss kapde se bhi mulayam lag rahe the. Mujhe wahaan kuch hua, kuch ajeeb, kuch naya, lekin mujhe achha nahi laga.
पुरुष: मैं वास्तव में कौन हूँ ? - यह एक ऐसा सवाल है जिसका सामना करना इधर आ कर मैंने छोड़ दिया है जो मैं इस मंच पर हूँ, वह यहाँ से बाहर नहीं हूँ और जो बाहर हूँ...ख़ैर, इसमें आपकी क्या दिलचस्पी हो सकती है कि मैं यहाँ से बाहर क्या हूँ ? शायद अपने बारे में इतना कह देना ही काफी है कि सड़क के फुटपाथ पर चलते आप अचानक जिस आदमी से टकरा जाते हैं, वह आदमी मैं हूँ। आप सिर्फ घूर कर मुझे देख लेते हैं - इसके अलावा मुझसे कोई मतलब नहीं रखते कि मैं कहाँ रहता हूँ, क्या काम करता हूँ, किस-किससे मिलता हूँ और किन-किन परिस्थितियों में जीता हूँ। आप मतलब नहीं रखते क्योंकि मैं भी आपसे मतलब नहीं रखता, और टकराने के क्षण में आप मेरे लिए वही होते हैं जो मैं आपके लिए होता हूँ। इसलिए जहाँ इस समय मैं खड़ा हूँ, वहाँ मेरी जगह आप भी हो सकते थे। दो टकरानेवाले व्यक्ति होने के नाते आपमें और मुझमें, बहुत बड़ी समानता है। यही समानता आपमें और उसमें, उसमें और उस दूसरे में, उस दूसरे में और मुझमें...बहरहाल इस गणित की पहेली में कुछ नहीं रखा है। बात इतनी है कि विभाजित हो कर मैं किसी-न-किसी अंश में आपमें से हर-एक व्यक्ति हूँ और यही कारण है कि नाटक के बाहर हो या अंदर, मेरी कोई भी एक निश्चित भूमिका नहीं है।
राजेश: बेशक! कितना बड़ा दम्‍भ है। हम घास-फूस के छप्‍परों को बह जाने देते हैं। ढोर-ढंगर को बह जाने देते हैं। आदमियों को बचाने के लिए चन्‍दा करते हैं। क्‍यों! क्‍या ये आदमी घास-फूस और ढोर-ढंगर से किसी माने में बेहतर होते हैं? कभी नहीं डाक्‍टर! ये लोग कीड़ों से भी बदतर होते हैं। इनका जिन्‍दा रहना दुनिया के लिए अभिशाप है और इनके लिए यातना। फिर इन्‍हें क्‍यों न मरने दिया जाय। मैं जब कभी सोचता हूँ कि इस धरती पर करोड़ों आदमीनुमा कीड़े रेंगते हैं और नारकीय जिन्‍दगी बिताते हैं तो मेरा मन गुस्‍सा और तरस से भर जाता है। ये, हम सब, क्‍या हैं हमारी जिन्‍दगी के माने? करोड़ों साल से हम लोग सितारों की छाँह में धरती पर अपने पद-चिह्न बनाते हुए चले आए हैं। मगर हैं हम सब भी कीड़े के कीड़े! हमारा अस्तित्‍व मिट जाय तभी अच्‍छा हो। मुझे तो अफसोस है कि ये बाढ़ें इतनी कम क्‍यों आती हैं? मनु के जमाने का जल प्रलय क्‍यों नहीं आता है! इन्‍सान की जिन्‍दगी का नाम-निशान क्‍यों नहीं खत्‍म हो जाता? कीड़े? ये सब मरने के लिए बने हैं।
राजेश: नहीं अब मैं ठीक हूँ... बिलकुल ठीक... हाँ तो मुझमें उस वख्‍त जाने कितनी ताकत आ गई! मैं देवी के मन्दिर के पास गया। मैंने अपने मन में सोचा था कि बहुत भयानक जगह होगी। लेकिन वह तो बहुत खुशनुमा जगह थी। मन्दिर का सिर्फ गुम्‍बद चमक रहा था। पीपल और पाकड़ के पेड़ डूब गए थे। इतनी खामोशी थी चारों ओर कि लगता था हजारों मील से पत्‍थरों से टकराती, गाँवों को डुबाती हुई यह नदी इन पेड़ों की छाँह में आ कर सो गई है। मैं चुपचाप खड़ा रहा। कुछ दूर तक पेड़ों की छाँह से पानी साँवला पड़ गया था। थोड़ी देर में सूरज डूबने लगा। सैकड़ों सिन्‍दूरी बादल पानी में उतर आए और फूल की तरह धीरे-धीरे बहने लगे। मैं चुपचाप था। पता नहीं किसने मेरे कदमों की ताकत छीन ली थी। धीरे-धीरे मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मुझे लगा मैं क्‍यों मरना चाहता हूँ। जिन्‍दगी तो इतनी सुन्‍दर है, इतनी शान्‍त है। मुझे जिन्‍दगी का नया पहलू मिला उस दिन! वह यह कि चाहे ऊपर की सतह मटमैली हो, मगर जिन्‍दगी की तहों के नीचे गुलाब के बादलों का कारवाँ चलता रहता है। क्रूरता, कुरूपता के नीचे सौन्‍दर्य है, प्रेम है और सौन्‍दर्य और प्रेम, कुरूपता और क्रूरता को चीर कर नीचे पैठ जाता है। उसे देखने के लिए सहज आँख में नया सूरज होना चाहिए, पद्मा! [गहरी साँस लेकर] और धीरे-धीरे लगा कि जैसे मन की सारी कटुता, सारी निराशा, सारा अँधेरा, धुलता जा रहा है। लगा कि जब तक जिन्‍दगी में एक कण सौन्‍दर्य है, तब तक मरना पाप है। पागलों की तरह उन्‍हीं तैरते हुए बादलों के साथ मैं चल पड़ा... अँधेरा हो गया... [शीला दूध लाकर रख देती है और बैठ जाती है] मैं वहीं बैठ गया। थोड़ी देर में उधर कुछ सियार आए। वे लोग किसी की लाश को घसीट रहे थे। मुझे देख कर भागे। मैं समीप गया; देखा एक दस-बारह साल का लड़का है। अभी साँस चल रही है। मैंने उसे बाहर निकाला। मन काँप उठा। मगर उठा कर लाने की ताकत नहीं थी। कितना सुन्‍दर था वह, कितना मासूम! मैं बैठ कर सियारों से उसकी रखवाली करने लगा। उस तरफ सितारे थे, इस तरफ लाश। बीच में मैं उसकी रखवाली कर रहा था। चारों ओर सुनसान! लग रहा था आसमान से अजब-सी शान्ति मेरी आत्‍मा पर बरस रही है। मेरे व्‍यक्तित्‍व के रेशे फिर से सुलझते जा रहे हैं, और यह लड़का वह चिरन्‍तर जीवन है, वह सौन्‍दर्य है जिसकी रखवाली मैं युगों से करता आ रहा हूँ और युगों तक करता जाऊँगा। जिन्‍दगी नील कमल की तरह मेरे सामने खुल गई। मुझे लगा कि आदमी सारी तकलीफ और दर्द के बावजूद इसलिए जिन्‍दा है कि वह सौन्‍दर्य और जीवन की खोज करे, उसकी रक्षा करे, उसका निर्माण करे... और सौन्‍दर्य के निर्माण के दौरान वह खुद दिनों-दिन सुन्‍दर बनता जाय। अगर कोई नहीं है उसके साथ तो भी वह सौन्‍दर्य का सपना, वह ईश्‍वर के साथ है। उसे आगे बढ़ना ही है... यही जिन्‍दगी के माने हैं। इसलिए मैं फिर जिन्‍दगी में वापस लौट आया कि क्रूरता और कमजोरी के सामने हारूँगा नहीं, मरूँगा नहीं, सौन्‍दर्य का सृजन करूँगा और सुन्‍दर बनूँगा। जिन्‍दगी बहुत प्‍यारी है, बहुत अच्‍छी है, और आदमी को बहुत काम करना है।
तजकिरानवीस: मियाँ, अब कैसी दिल्‍ली, कहाँ का दरबार और कौन-से अकबरे-सानी! अकबरो-आलमगीर वगैरह के बाद आलमगीरे-सानी और शाह आलम-सानी और अकबरे-सानी लौहे-सल्‍त-नते-मुग लिया पर हर्फे-मुकर्रर (दोहराये गये अक्षर) की तरह आते हैं और उजड़ी हुई दिल्‍ली की खराबए-वहशतनाक (भयानक निर्जन स्‍थान) में, जिसका नाम कभी किलए-मुअल्‍ला (ऊँचा या श्रेष्‍ठ किला) था, एक लुटा-पिटा दरबार जम जाता है। घड़ी-भर के लिए शेरो-अदब की आवाज बुलंद होती है, फिर वही वहशतों का हमला और वही हू (सुनसान) का आलम। लोग अवध या दकन की तरफ भाग निकले हैं और दिल्‍ली के गोरिस्‍ताने-शाही (शाही कब्रिस्‍तान) में फिर वही कुत्‍ते लौटते हैं और उल्‍लू बोलता है।
मीर: (बेनीप्रसाद से) सुन लिया, बेनी परशाद। अब बताओ ककड़ी के मौजू पर इससे बेहतर नज्‍म हो सकती है? ये सनाए व बदाए (अलंकार तथा नये प्रयोग), ये तश्‍बीहें-इस्‍तआरे (उपमाएं), तलमीह (संकेत)-यानी शेरो-शायरी और इल्‍मो-अदब में जिसे हुस्‍ने-बयान कहते हैं - यह सब क्‍या है। सुनो, एक दानाए-राज की बात सुनो और हमेशा के लिए पल्‍लू से बाँध लो। किसी पाये के मुअल्लिस ने अपने एक शादिर्ग को इल्‍मे-बयान बड़ी मेहनत से पढ़ाया। जब लड़का पढ़-लिखकर फारिग हुआ तो उस्‍ताद ने कहा : अब जाओ, बाजारों और गालियों में घूम-फिरकर लोगों की बातें सुनो और पता लगाओ कि इन बातों का इल्‍मे-बयान से क्‍या रिश्‍ता है। लड़का गली-कुचों की खाक छानता फिरा, मगर उसको लोगों की बातों का ताल्‍लुक इल्‍मे-बयान से मालूम न हुआ। उसने उस्‍ताद से हाल कह सुनाया। उस्‍ताद ने उसे फिर बाये-बिस्मिल्‍लाह (बिस्मिल्‍लाह शब्‍द की 'ब' ध्‍वनि, बिलकुल शुरू) से ताये-तमत (तमत शब्‍द ध्‍वनि, बिलकुल अंत) तक इल्‍म सिखाया और कहा कि एक बार फिर बाजारों के चक्‍कर काटो और यही बात दरयाफ्त करो। इस दफा कुछ थोड़ा-सा ताल्‍लुक शादिर्ग की समझ में आया। उसने वापस आकर कहा : हाँ, थोड़ा-सा ताल्‍लुक मालूम होता है। इस पर उस्‍ताद ने कहा : अभी तुम इल्‍मे-बयान को समझे नहीं, फिर पढ़ो। शुरू से आखिर तक एक बार फिर सब-कुछ पढ़ चुकने के बाद शादिर्ग क्‍या देखता है कि किसी शख्‍स की कोई बात ऐसी नहीं जिसका ताल्‍लुक इल्‍मे-बयान से न हो। कुछ समझे?
Hamlet: To be, or not to be: that is the question: Whether 'tis nobler in the mind to suffer The slings and arrows of outrageous fortune, Or to take arms against a sea of troubles, And by opposing end them? To die: to sleep; No more; and by a sleep to say we end The heart-ache and the thousand natural shocks That flesh is heir to, 'tis a consummation Devoutly to be wished. To die, to sleep; To sleep: perchance to dream: ay, there's the rub; For in that sleep of death what dreams may come When we have shuffled off this mortal coil, Must give us pause: there's the respect That makes calamity of so long life; For who would bear the whips and scorns of time, The oppressor's wrong, the proud man's contumely, The pangs of despised love, the law's delay, The insolence of office and the spurns That patient merit of the unworthy takes, When he himself might his quietus make With a bare bodkin? who would fardels bear, To grunt and sweat under a weary life, But that the dread of something after death, The undiscovered country from whose bourn No traveler returns puzzles the will And makes us rather bear those ills we have Than fly to others that we know not of? Thus conscience does make cowards of us all; And thus the native hue of resolution Is sicklied o'er with the pale cast of thought, And enterprises of great pith and moment With this regard, their currents turn awry, And lose the name of action.--Soft you now! The fair Ophelia! Nymph, in thy orisons Be all my sins remembered. Play: Hamlet (1600-1601) | Writer: William Shakespeare
Trinculo: Here's neither bush nor shrub, to bear off any weather at all, and another storm brewing; I hear it sing i' the wind: yond same black cloud, yond huge one, looks like a foul bombard that would shed his liquor. If it should thunder as it did before, I know not where to hide my head: yond same cloud cannot choose but fall by pailfuls. What have we here? a man or a fish? dead or alive? A fish: he smells like a fish; a very ancient and fish- like smell; a kind of not of the newest Poor- John. A strange fish! Were I in England now, as once I was, and had but this fish painted, not a holiday fool there but would give a piece of silver: there would this monster make a man; any strange beast there makes a man: when they will not give a doit to relieve a lame beggar, they will lazy out ten to see a dead Indian. Legged like a man and his fins like arms! Warm o' my troth! I do now let loose my opinion; hold it no longer: this is no fish, but an islander, that hath lately suffered by a thunderbolt. (Thunder) Alas, the storm is come again! my best way is to creep under his gaberdine; there is no other shelter hereabouts: misery acquaints a man with strange bed-fellows. I will here shroud till the dregs of the storm be past. PLAY: The Tempest (1610-1611) | WRITTEN BY: William Shakespeare
Claudio: Ay, but to die, and go we know not where; To lie in cold obstruction and to rot; This sensible warm motion to become A kneaded clod; and the delighted spirit To bathe in fiery floods, or to reside In thrilling region of thick-ribbed ice; To be imprison'd in the viewless winds, And blown with restless violence round about The pendent world; or to be worse than worst Of those that lawless and incertain thought Imagine howling: 'tis too horrible! The weariest and most loathed worldly life That age, ache, penury and imprisonment Can lay on nature is a paradise To what we fear of death. PLAY: MEASURE FOR MEASURE (1603-1604) | WRITTEN BY: WILLIAM SHAKESPEARE
Rochester: Allow me to be frank at the commencement: you will not like me. No, I say you will not. The gentlemen will be envious and the ladies will be repelled. You will not like me now and you will like me a good deal less as we go on. Oh yes, I shall do things you will like. You will say ‘That was a noble impulse in him’ or ‘He played a brave part there,’ but DO NOT WARM TO ME, it will not serve. When I become a BIT OF A CHARMER that is your danger sign for it prefaces the change into THE FULL REPTILE a few seconds later. What I require is not your affection but your attention. I must not be ignored or you will find me a troublesome a package as ever pissed in the Thames. Now. Ladies. An announcement. (He looks around.) I am up for it. All the time. That’s not a boast. Or an opinion. It is a bone hard medical fact. I put it around, don't know? And you will watch me putting it round and sigh for it. Don’t. It is a deal of trouble for you and you are better off watching and drawing your conclusions from a distance than you would be if I got my tarse pointing up your petticoats. Gentlemen. (He looks around.) Do not despair, I am up for that as well. When the mood is on me. And the same warning applies. Now, gents: if there be vizards in the house, jades, harlots ( as how could there not be) leave them be for the moment. Still, you're cheesy erections till I have had my say. But later when you shag – and later you will shag, I shall expect it of you and I will know if you have let me down – I wish you to shag with my homuncular image rattling in your gonads. Feel how it was for me, how it is for me and ponder. ‘Was that shudder the same shudder he sensed? Did he know something more profound? Or is there some wall of wretchedness that we all batter with our heads at that shining, livelong moment.’ That is it. That is my prologue, nothing in rhyme, certainly no protestations of modesty, you were not expecting that I trust. I reiterate only for those who have arrived late or were buying oranges or were simply not listening: I am John Wilmot, Second Earl of Rochester and I do not want you to like me. play: The Libertine | written by: Stephen Jeffreys
The Common Man: Mai Saabit Kuch Nahi Kar Raha Hu Rathore Sahab, Mai Sirf Aapko Yaad Dilana Chahta Hu, Ki Logo Mai Gussa Bahut Hai Unhe Aazmana Band Kajiye. We are Resiliant By Force Not By Choice. Aapko Bebas Karne Me Mujhe Sirf Chaar Hafte Lage. Aapko Kya Lagta Hai Ki Jo Log Hame Marte Hai Wo Humse Jyada Intelligent Hai. Are Internet Par Bomb Type karKe Search Mariye Teen Sau Baawan Sides Milengi, Ki Bomb Kaise Banaya Jata Hai , Kya - Kya Equipment Estemal Hota, Saara Information Aasani se Access Hota Hai Muft Me. Aap Jante Hai Ki Kapde Dhone Kaa Sabun Tak Ak Potential Bumb Hota Hai, Mujhe Lagta Hai Ke Common Man Ke Liye Isse Jyada Useful Product Aaj Tak Nahi Bana. Galti Hamari Hai Hum Log Bahot Jaldi Used To Ho Jate Hai , Ak Aisa Hadsa Hota Hai To Channel Badal - Badal Kar Sara Majra Dekh Liya, SMS Kiya Phone Kiya, Shukr Manaya Ki Hum Log Bach Gaye Aur Hum Us Situation Se Ladne Ki Bajay Hum Uske Saath Adjust Karna Shuru Kar Dete Hai. Par Hamari Bhi Majburi Hai Naa, Hume Ghar Chalana Hota Hai Sahab, Isliye Hum Sarkar Chunte Hai Ki Wo Mulk Chalaye. Aap log, Sarkar , Police Force, Intelligence Saksham Hai Is Tarah Ke best Control Ke liye , Lekin Aap Log Kar Nahi Rahe Hai, Sirf Shah Diye Jaa Rahe Hai.. Why Are You Not Nipping Them In The Bud ?? Ek Aadmi Gunahgar Hai Yaa Nahi Isko Saabit Karne Mai Aapko Das Saal Lag Jaate Hai, Aapko Ye Nahi Lagta Hai Ki Ye Aapki Kabliyat Par Saawal Hai, Ye Saara Natak Band Hona Chahiye, This Hole Blady System Is Fraud. AAp Jaise Log In Kido Kaa Safaya Nahi Karetge To Hame Jhadu Uthani Hogi, Lekin Kya Hai Usse Hamari Civilized Society Kaa Balance Bigad Jayega, Lekin Kya Kare, Rathore Sahab Mujhe Yakin Hai ki Jo Train Blast Huye wo Sirf Ek Terrorist activity Nahi Thi, Wo Ek Bahot Bada Saawal Tha, Aur Wo Sawaal Ye Tha Ki Bhai Hum To Tumhe Isi Tarah hi Marenge, Tum Kya Kar Loge ?? Yes, They asked UsThis Question On A Friday, Repited It On Tuseday And I Am Just Replaying On Wednesday. Movie: A Wednesday(2008), Character: A Common Man
GUS: Hazel Grace, like so many before you – and I say this with great affection – you spent your Wish… moronically. Hush! I’m in the midst of a grand soliloquy here. You were young. Impressionable. The Grim Reaper staring you in the face. And the fear of dying with your one true Wish left ungranted led you to rush into making one you didn’t really want, for how could little Hazel Grace, having never read “An Imperial Affliction” ever know that her one TRUE wish was to visit Mr. Peter Van Houten in his Amsterdamian exile. If you were smart, you would have saved your wish til the time in your life when you really knew your true self. Good thing I saved mine. I’m not gonna give you my Wish or anything. But I too have an interest in meeting Peter Van Houten and it wouldn’t make much sense to meet him without the girl who introduced me to his book, now would it? I talked to the Genies and they’re in total agreement. (beat) We leave in a month. MOVIE: THE FAULT IN OUR STAR | CHARACTER: GUS (SUFFERING FROM CANCER) | GENDER: MALE
Wanna know how I got these scars???........My father was a drinker....and a fiend..... So one night, he goes off crazier than usual. Mommy gets the kitchen knife to defend herself....He doesn't like that. Not....one....bit.....So,... me watching, he takes the knife to her, laughing while he does it. He looks at me.... and he says "Why so serious?!"....He comes at me with the knife......"Why so serious?!!"..."Let's put a smile on that face!!"......And......(looks at other gangster) Why so serious? MOVIE: THE DARK KNIGHT | CHARACTER: MALE
Get busy living or get busy dying. That's goddamn right. For the second time in my life, I'm guilty of committing a crime. Parole violation. Course, I doubt they're going to throw up any road blocks for that. Not for an old crook like me. I find I'm so excited I can barely sit still or hold a thought in my head. I think it's the excitement only a free man can feel. A free man at the start of a long journey whose conclusion is uncertain. I hope I can make it across the border. I hope to see my friend and shake his hand. I hope the Pacific is as blue as it has been in my dreams. I hope. MOVIE: THE SHAWSHANK REDEMPTION | CHARACTER: MALE
I'd hold you up to say to your mother, "this kid's gonna be the best kid in the world. This kid's gonna be somebody better than anybody I ever knew." And you grew up good and wonderful. It was great just watching you, every day was like a privilege. Then the time come for you to be your own man and take on the world, and you did. But somewhere along the line, you changed. You stopped being you. You let people stick a finger in your face and tell you you're no good. And when things got hard, you started looking for something to blame, like a big shadow. Let me tell you something you already know. The world ain't all sunshine and rainbows. It's a very mean and nasty place and I don't care how tough you are it will beat you to your knees and keep you there permanently if you let it. You, me, or nobody is gonna hit as hard as life. But it ain't about how hard ya hit. It's about how hard you can get it and keep moving forward. How much you can take and keep moving forward. That's how winning is done! Cause if you're willing to go through all the battling you got to go through to get where you want to get, who's got the right to stop you? I mean maybe some of you guys got something you never finished, something you really want to do, something you never said to someone, something... and you're told no, even after you paid your dues? Who's got the right to tell you that, who? Nobody! It's your right to listen to your gut, it ain't nobody's right to say no after you earned the right to be where you want to be and do what you want to do! Now if you know what you're worth then go out and get what you're worth. But ya gotta be willing to take the hits, and not pointing fingers saying you ain't where you wanna be because of him, or her, or anybody! Cowards do that and that ain't you! You're better than that! I'm always gonna love you no matter what. No matter what happens. You're my son and you're my blood. You're the best thing in my life. But until you start believing in yourself, ya ain't gonna have a life. MOVIE: ROCKY BALBOA | CHARACTER: MALE

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